Bheel Tribe of Rajasthan (भील जनजाति)

राजस्थान की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में Bheel Tribe of Rajasthan (भील जनजाति) के बारे में प्रश्न पूछा जाता है जब भी राजस्थान के जनजातियों की बात आती है तो भील सबसे मुख्य जनजाति होती है।

भील जनजाति राजस्थान में बहुत पुराने समय से रह रही है, राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं में भील जनजाति के साथ-साथ कठोरी जनजाति, गरासिया जनजाति इत्यादि के बारे में भी प्रश्न पूछा जाता है।

हमें Tribes of Rajasthan (राजस्थान की जनजातियां) topic पढ़ना है तो हमें मुख्य रूप से राजस्थान की पांच सबसे ज्यादा पूछे जाने वाली जनजातियों के बारे में पढ़ना चाहिए।

जिसमें सबसे पहले मीणा जनजाति, Bheel janjati, डामोर जनजाति, काथोड़ी जनजाति, एवं गरासिया जनजाति है मुख्य रूप से इन्हीं पांच पर प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न पूछे जाते हैं।

भील जनजाति राजस्थान की एक बहुत पुरानी जनजाति हैं यह जनजाति अपना भरण-पोषण वनों में शिकार करके तथा वनों से प्राप्त वस्तुओं का क्रय विक्रय करके करती है।

Bheel tribe

Bhil Janjati का जीवन यापन वनों में ही होता रहा है तथा यह अपना जीवन यापन वन्य जीवों का शिकार करके, वनों के साथ तालमेल बिठाते हुए करते हैं।

यह वनों से प्राप्त लकड़ी, शहद, कुछ जड़ी बूटियां, और अन्य वनों से प्राप्त वस्तु इत्यादि को बाजार में बेच कर भी अपना जीवन यापन करते हैं।

कुछ भील जनजाति (Bheel Janjati Rajasthan) के लोग आज शिक्षित है और भील जनजाति के लिए काम कर रहे हैं वह भील जनजाति को भी शिक्षा की ओर अग्रसर करने में प्रयासरत हैं।

Bheel Janjati in Rajasthan

भील जनजाति राजस्थान में बहुत जगहों पर पाई जाती है जिसमें मुख्य रुप से भील जनजाति दक्षिणी राजस्थान के कुछ जिलों में अधिक है।

भील जनजाति दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा डूंगरपुर भरतपुर एवं चित्तौड़गढ़ जिले में अधिक है, सबसे अधिक चित्तौड़गढ़ जिले के प्रतापगढ़ तहसील के वेशभू में भील जनजाति अधिक है।

Bheel Tribe in India

अगर हम पुरे भारत में भील जनजाति के निवास क्षेत्र की बात करें तो मुख्य रूप से भील जनजाति –

  • यह जनजाति दुर्गम व निर्जन पर्वतीय क्षेत्र में निवास करते हैं जैसे अरावली पर्वतमाला ,विंध्याचल पर्वत, सतपुड़ा की पहाड़ियां, खता वन क्षेत्र आदि।
  • भारत में भील चार राज्यों में सर्वाधिक केंद्रित है राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र !
  • राजस्थान में भीलों का केंद्र बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर ,चितौड़गढ़, चित्तौड़गढ़, आदि से हैं
  • मध्यप्रदेश में भील जनजाति का केंद्र धार, झागुआ, रतलाम से हैं।
  • गुजरात में भीलो का केंद्र पंचमहल (बड़ोदरा) में है।
  • महाराष्ट्र में भीलों का केंद्र औरंगाबाद अहमदनगर जलगांव नासिक धुले आदि जिलों में है।

भील जनजाति की अर्थव्यवस्था

भीलों में आजीविका के मुख्य साधन शिकार, वनोपज विक्रय एवं कृषि आदि है।

दजिया – भीलों द्वारा मैदानी भागों में वनों को काटकर चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहुँ, चना, आदि बोये जाते हैं। इस प्रकार की खेती को दजिया कहते हैं।

चिमाता – भील जनजाति द्वारा पहाड़ी ढ़ालों के वनों को जलाकर बनाई गई कृषि योग्य भूमि जिसमें वर्षा काल के दौरान अनाज, दाले, सब्जियाँ बोई जाती हैं।

भील जनजाति वेशभूषा

भील पुरुष सिर पर लाल, पीला अथवा केसरिया फेटा (साफा), बदन पर अंगरखी, कमीज या कुर्ता तथा घुटनों तक ढेपाड़ा (धोती) बाँधते हैं। भील महिला लूगड़ा, काँचली, कब्जा, घाघरा अथवा पेटीकोट पहनती है।

वर्तमान में भील जनजाति के लोग आधुनिक वस्त्र पहनने लगे हैं, वर्तमान में पुरुष कमीज धोती साफा अथवा पेंट शर्ट पहनते हैं।

स्त्रियां घागरा ओढ़नी काचली पहनती है, लड़कियां गागरी ओढनी पहने लगी है, लड़के लंगोट पहनते हैं, तथा भील महिलाएं वर्तमान में चांदी, पीतल, जस्ता व निकल के बने आभूषण पहनती हैं।

भील जनजाति से जुङी पौराणिक कथा

  • पुराणों के अनुसार भील जनजाति की उत्पत्ति भगवान शिव के पुत्र निषाद द्वारा मानी जाती है। कथा के अनुसार एक बार जब भगवान शिव ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे, और निषाद ने अपने पिता शिव के प्रिय बैल नंदी को मार दिया था तब दंड स्वरूप भगवन शिव ने उन्हें पर्वतीय क्षेत्र में निर्वासित कर दिया था वहां उनके वंशज भील कहलाये।
  • रामायण महाकाव्य के रचयिता ऋषि वाल्मीकि भील पुत्र थे, तथा उनका मूल नाम वालिया था।
  • महाभारत महाकव्य में वर्णित गुरुभक्त एकलव्य भी भील जनजाति थे।
  • रामायण महाकाव्य में भी शबरी नामक महिला का वर्णन मिलता है जिसने श्रीराम को वनवास के दौरान जूठे बेर खिलाए थे, उस सबरी का संबंध भी भील जनजाति से ही था। इस जनजाति की कर्त्तव्यनिष्ठा, प्रेम और निश्छल व्यवहार के उदाहरण प्रसिद्ध हैं।

भील जनजाति की विशेषतायें

  • भील द्रविड़ भाषा का शब्द है।
  • भील जनजाति को प्राचीन समय में किरात कहा जाता था।
  • भील स्त्री-पुरुषों को गोदने-गुदाने का बड़ा शौक होता है।
  • भंगोरिया नामक त्यौहार भीलों में मनाया जाता है।
  • भील ‘कांडी’ शब्द को गाली एवं ‘पाडा’ शब्द को शुभ मानते हैं।
  • डी. एन. मजूमदार ने भीलों का संबंध नेग्रिटो प्रजाति से बताया है।
  • गोविन्द गुरु ने भीलों में सामाजिक जागृति के लिए भगत पंथ की स्थापना की।
  • भील केसरियानाथ (ऋषभदेव) के चढ़ी केसर का पानी पीकर यह कभी झूठ नहीं बोलते।
  • भील जनजाति में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना बहुत प्रबल होती हैं।
  • विधवा विवाह प्रचलन में है लेकिन छोटे भाई की विधवा को बड़ा भाई अपनी पत्नी नहीं बना सकता।
  • भील जनजाति अत्यन्त निर्धन जनजाति है जिसमें स्थानांतरित कृषि का प्रचलन है।
  • भीलों के घर ‘टापरा’ या ‘कू’ कहलाते हैं। सामान्यत भीलों घुटन में बाल-विवाह प्रचलित नहीं है।
  • गोविन्द गुरु ने आदिवासियों के उत्थान हेतु 1883 ई. में सिरोही में सम्प सभा की स्थापना की।
  • प्रसिद्ध लेखक रोने ने अपनी पुस्तक ‘Wild Tribes of India’ में भीलों का मूल निवास मारवाड़ बताया है।
  • भील पुरुष व स्त्रियाँ दोनों शराब पीने के बहुत शौकीनहोते है, ये महुआ से बनी शराब बड़े चाव से पीते हैं।
  • भीलों में जनचेतना जागृत करने के लिए सन् 1920-21 में मोतीलाल तेजावत द्वारा मातृकुंडिया (चित्तौड़) नामक स्थान पर एकी आंदोलन चलाया।
  • मेवाड़ राजचिह्न में एक तरफ राजपूत शासक का तथा दूसरी तरफ भील सरदार का चित्र होता है। भील जनजाति जादू-टोने में विश्वास एवं अंधविश्वासी होती है।
  • भीलों में विवाह की सह-पलायन प्रथा विद्यामान है जिसमें लड़के-लड़की भाग कर 2-3 दिन बाद वापस आते हैं तब गाँवों के लोग एकत्रित होकर उनके विवाह को मान्यता प्रदान कर देते हैं। डाम देना – भीलों में रोगोपचार विधि।

Bheel Tribe Facts

  • महुआ – भीलों का पवित्र वृक्ष।
  • मोकड़ी – महुआ से बनी शराब।
  • छेड़ा फाड़ना – तलाक की प्रथा।
  • भराड़ी – भीलों की विवाह की देवी।
  • बांगड़ी (भीली) – भीलों की बोली।
  • विला – भीलों के मंदिर व थान का पुजारी।
  • कायटा या काट्‌टा – भील जनजाति में मृत्युभोज।
  • बोलवा – मार्गदर्शक का कार्य करने वाला भील।
  • जी. एस. थॉमसन – ‘भीली व्याकरण’ नामक ग्रंथ के लेखक।
  • भगत – भील जनजाति में धार्मिक संस्कार सम्पन्न कराने वाला व्यक्ति।
  • कोदरा – भीलों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला जंगली अनाज।
  • नोतरा – भील जनजाति में शादी के समय वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को दी जाने वाली रकम।
  • गैर नृत्य – फाल्गुन मास में होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
  • पाखरिया – यदि कोई भील किसी सैनिक के घोड़े को मार देता है तो वह पाखरिया कहलाता है।
  • नृत्य – हाथीमन्ना नृत्य, गैर, नेजा, गवरी, भगोरिया, लाढ़ी नृत्य, युद्ध नृत्य, द्विचक्री नृत्य, घूमरा नृत्य आदि।
  • भोजन – मक्के की रोटी व कांदे की भात मुख्य खाद्य पदार्थ हैं। माँसाहारी जाति लेकिन गाय का माँस खाना वर्जित है।
  • हाथीमन्ना नृत्य – विवाह के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा घुटनों के बल बैठकर तलवार घुमाते हुए किया जाने वाला नृत्य।
  • गोलड़ – भीलों में नातरा लाई हुई स्त्रियों के साथ आए हुए बच्चों को “गोलड़’ कहा जाता है जो पारिवारिक सदस्य की तरह माने जाते हैं।
  • मेलनी – आदिवासियों में जब किसी व्यक्ति की शादी होती है तब उनके परिवारजन 10-10 किलो मक्का देते हैं जिसे मेलनी कहा जाता है।
  • गवरी (राई) – भीलों का प्रसिद्ध नाट्य जो रक्षाबन्धन के दूसरे दिन से प्रारम्भ होकर 40 दिन तक चलता है। यह राज्य का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है।
  • हाथीवैण्डो प्रथा – भील समाज में प्रचलित अनूठी वैवाहिक परम्परा जिसमें पवित्र वृक्ष पीपल, बाँस एवं सागवान के पेड़ों को साक्षी मानकर हरज व लाडी (दूल्हा-दुल्हन) जीवन-साथी बन जाते हैं।
  • भील जनजाति में प्रचलित विवाह – देवर विवाह, विनिमय विवाह, सेवा विवाह, क्रय विवाह, सहपलायन विवाह, परविक्षा विवाह, बहुपत्नी विवाह, हरण विवाह, हठ विवाह, विधवा विवाह, गोल गधेड़ा विवाह आदि।

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