Kathodi Tribe of Rajasthan

राजस्थान की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में काथोड़ी जनजाति (Kathodi Tribe) है के बारे में प्रश्न पूछा जाता है और जनजातियों में मुख्य रूप से Meena Tribe और Kathodi Tribe पर ही प्रश्न राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं में आता है।

हमें Tribes of Rajasthan (राजस्थान की जनजातियां) topic पढ़ना है तो हमें मुख्य रूप से राजस्थान की पांच सबसे ज्यादा पूछे जाने वाली जनजातियों के बारे में पढ़ना चाहिए।

जिसमें सबसे पहले मीणा जनजाति, Bheel Janjati, डामोर जनजाति, काथोड़ी जनजाति, एवं गरासिया जनजाति है मुख्य रूप से इन्हीं पांच पर प्रायोगिक परीक्षा के प्रश्न पूछे जाते हैं।

राजस्थान की कुछ मुख्य जनजातियों में काथोड़ी जनजाति (Kathodi Tribe) का नाम भी सम्मिलित है यह जनजाति राजस्थान में बहुत कम संख्या में पाई जाती है 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी कुल जनसंख्या 4833 (5000 से भी कम) थी जिसका 50% भाग उदयपुर जिले में निवास करता है।

Kathodi Tribe Rajasthan

राज्य की कुल कथौड़ी जनजाति की आबादी की लगभग 52 प्रतिशत कथौड़ी लोग उदयपुर जिले की कोटडा, झाडोल, एव सराडा, पंचायत समिति में बसे हुए है। शेष मुख्यतः डूंगरपुर, बारां एवं झालावाड़ में बसे है।

Kathodi Tribe of rajasthan

ये महाराष्ट्र के मूल निवासी है। खैर के पेड़ से कत्था बनाने में दक्ष होने के कारण वर्षो पूर्व उदयपुर के कत्था व्यवसायियों ने इन्हें यहाँ लाकर बसाया।

कत्था तैयार करने में दक्ष होने के कारण ये कथौड़ी कहलाए गए। राजस्थान में 2011 की जनगणना के अनुसार कथौड़ी जनजाति की कुल आबादी मात्र 4833 है।

ये Kathodi, Katkari, Dhor Kathodi, Dhor Katkari, Son Kathodi, Son Katkari के अलग-अलग उपजातियों में पाए जाते हैं।

वर्तमान में वृक्षों की अंधाधुध कटाई व पर्यावरण की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा इस कार्य को प्रति बंधित घोषित कर दिए जाने कथौड़ी लोगों की आर्थिक स्थिति बडी शोचनीय एवं बदतर हो गयी है।

आज यह जनजाति समुदाय जगंल से लघु वन उपज जैसे बांस, महुआ, शहद, सफेद मूसली, डोलमा, गोंद, कोयला एकत्र कर और चोरी-छुपे लकड़ियाँ काटकर बेचने तक सीमित हो गया है।

राज्य की अन्य सभी जनजातियों की तुलना में इस जनजाति के लोगों का शैक्षिक एवं आर्थिक जीवन स्तर अत्यधिक निम्न है।

Kathodi Tribe की प्रमुख विशेषताएं

यहां Kathodi Tribe के बारे में मुख्य विशेषताएं बताई गई है यहां पर जो विशेषताएं बताई गई है इन्हीं से प्रायोगिक परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे इनके नृत्य, वाद्य यंत्र, इनके रहने का तरीका इत्यादि के प्रश्न परीक्षाओं में बनते हैं।

  • कथौड़ी जंगलों व पहाड़ों में रहने वाली ऐसी जनजाति है, जो स्वभावतः अस्थाई एवं घुमन्तु जीवन जीती रही है।
  • खेर के जंगलों से कत्था तैयार करने के अलावा मछली पकड़ना, कृषि कार्य करना यह जनजाति अपना गुजर बसर करती है।
  • कथौड़ी लोग घास – पूस, पत्तों एवं बांसों से बने झोपडों, जिन्हे खोलरा कहते है, में रहते है।
  • इनके परिवार आत्म केन्द्रित होते है। व्यक्ति शादी होते ही अपने मूल परिवार से अलग हो जाता है। नाता करना, विवाह विच्छेद एवं विधवा विवाह प्रचलित है।
  • कथौड़ी मांसाहारी होते है। दैनिक खानपान में मक्का, ज्वार आदि की रोटी प्याज आदि के साथ खाते है। चावल उनको प्रिय है। पेय पदार्थो में दूध का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता है।
  • ये शराब अधिक पीते हैं।
  • स्त्रियां मराठी अंदाज में साड़ी पहनती है, जिसे फड़का कहते है। इनमें गहने पहनने का कोई रिवाज नहीं है। इनमें शरीर पर गोदने का महत्व है।
  • कथौड़ी प्रकृति पर आश्रित जनजाति हैं। वे पुनर्जन्म को पूरी तरह मानते है।
  • कथौड़ी लोगों के प्रमुख परम्परागत देवता डूंगर देव, वाद्य देव, गाम देव, भारी माता, कन्सारी देवी आदि है। कथौड़ी देवताओं से ज्यादा देवी भक्ति में विश्वास रखते है।
  • कथौड़ी जनजाति में मुखिया को नायक कहते है।
  • इस जनजाति में मावलिया नृत्य एवं होली नृत्य प्रमुख है।
  • मावलिया नृत्य – इस नृत्य नवरात्रों में पुरूषों द्वारा किया जाता है। इसमें 10-12 पुरूष ढोलक, टापरा एवं बांसली की ताल पर गोल-गोल घूमते हुए नाचते हैं।
  • होली नृत्य – इसमें कथौडी स्त्रियां होली के अवसर पर एक दूसरे का हाथ पकडकर नृत्य करती है। नृत्य के दौरान पिरामिड भी बनाती है। पुरूष उनकी संगत में ढोलक, घोरिया, बांसली बजाते है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोक वाद्य – इनके वाद्य यंत्रों में गोरिड़िया एवं थालीसर मुख्य है।
  • तारणी – लोकी के एक सिरे पर छेद कर बनाया जाने वाला वाद्य जो महाराष्ट्र के तारपा लोकवाद्य के समान है।
  • घोरिया या खोखरा : बांस से बना वाद्य यंत्र।
  • पावरी – तीन फीट लंबा बांस का बना वाद्य यंत्र जो ऊर्ध्व बाँसुरी जैसा वाद्ययंत्र है। इसे मृत्यु के समय बजाया जाता है।
  • टापरा – बांस से बना लगभग 2 फीट लम्बा वाद्य यंत्र।
  • थालीसर – पीतल की थाली के समान बनाया गया वाद्य यंत्र। इसे देवी देवताओं की स्तुति के समय या मृतक का अंतिम संस्कार के बाद बजाते हैं।
  • इनमें विवाह में प्रथा व विधवा पुनर्विवाह प्रचलित है। मृत्युभोज प्रथा भी प्रचलित है।
  • परिवार आत्म केन्द्रित होते हैं। व्यक्ति शादी होते ही अपने मूल के परिवार से अलग हो जाता है। स्त्रियाँ मराठी अंदाज में साड़ी पहनती हैं, जिसे फड़का कहते हैं। गहना पहनने का कोई रिवाज नहीं है।
  • इनके प्रमुख परम्परागत देवता ड्रॅगर देव, वाद्य देव, गाम देव, जो भारी माता, कन्सारी देवी आदि हैं।

Kathodi Janjati Video

यह video एक vlogger कर Yatra Guruji द्वारा बनाई गई है इसमें कथोड़ी जनजाति (Kathodi Tribe) का रहन-सहन तथा उनके आज के समय के अनुसार जीने का तरीका दिखाया गया है इसे आपको अच्छी तरह से अंदाजा लग जाएगा कि कथोड़ी जनजाति किस प्रकार रहती है।

Conclusion

जहां पर हमने कथोड़ी जनजाति (Kathodi Tribe) के बारे में बात की और विस्तार से कथोड़ी जनजाति का रहन सहन, नृत्य, संगीत, वर्तमान दशा, उनके लोक देवता और उनकी कुछ विशेषताओं को जाना।


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