राजस्थान के लोकनाट्य बहुत ही प्रचलित है, Rajasthan Ke Loknatay के बारे में हमने आपको यहाँ पूरी जानकारी दी है।
राजस्थान में कितने प्रकार के और कौन-कौन से Loknatay होते है जो प्रतियोगी परीक्षाओ में पूछे जाते है।
Table of Contents
[hide]
Rajasthan Ke Loknatay | राजस्थान के लोकनाट्य
ख्याल
- धार्मिक सामाजिक ऐतिहासिक पुरानी आख्यान को पद्यबद रचनाओं के रूप में अलग-अलग पात्रों द्वारा गा-गाकर लोक मनोरंजन हेतु लोक नृत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
- लोकनाट्य में नगाड़ा में हारमोनियम प्रमुख वाद्य प्रयुक्त होते हैं।
शेखावाटी व चिड़ावा के ख्याल
- सीकर खंडेला चिड़ावा जाखल आदि क्षेत्र इस खेल के प्रसिद्ध अखाड़े रहे हैं।
- चिड़ावा के स्वर्गीय नानूलाल दूलिया राणा ख्याल लोकनाट्य के प्रसिद्ध कलाकार रहे हैं।
कुचामनी ख्याल
- इस ख्याल के प्रवर्तक लच्छीराम थे।
- ख्याल का रूप ओपेरा जैसा है।
- उगमराज इस ख्याल के प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं।
हेला ख्याल
- यह दोसा, लालसोट, सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों में प्रचलित है।
- इनमें नौबत वाद्य प्रयुक्त होता है।
- इसकी मुख्य विशेषता “हेला देना”( लंबी टेर में आवाज देना) रही है।
अली बख्सी ख्याल
- अलवर रियासत के मुंडावर ठिकाने के राव राजा अली बख्श के समय से अद्भुत है लोकनाट्य पूर्वी राजस्थान में प्रसिद्ध है।
कन्हैया ख्याल
- करौली, सवाई माधोपुर, भरतपुर व धौलपुर क्षेत्र की ओर कन्हैया ख्याल खेली जाती है।
- कन्हैया ख्याल में नौबत,घेरा, मंजीरा ढोलक वाद्य प्रयुक्त होते हैं।
ढपाली ख्याल
- अलवर भरतपुर लक्ष्मणगढ़ का क्षेत्र ढपाली ख्याल के लिए प्रसिद्ध है।
तुर्रा कलंगी
- तुर्रा कलंगी’ के मुख्य केन्द्र है, घोसूण्डा, चित्तौड़, निम्बाहेड़ा तथा नीमच (मध्य प्रदेश) इन स्थानों में “तुर्रा कलंगी’ के सर्वश्रेष्ठ कलाकार दिए हैं।जैसे चेतराम, घोसूण्डा का हमीद बेग एवं संवादों, पायल ताराचन्द तथा ठाकुर ओंकार सिंह आदि।
- मेवाड़ के शाह अली और तुकनगीर नाम के दो संत पीरों ने 400 वर्ष पहले इसकी रचना की और इसे यह नाम दिया।
- तुर्रा को महादेव “शिव’ और “कलंगी’ को “पार्वती’ का प्रतीक माना जाता है।
- तुकनगीर “तुर्रा’ के पक्षकार थे तथा शाह अली “कलंगी’ के।
- इन दोनों खिलाड़ियों ने “तुर्राकलंगी’ के माध्यम से “शिवशक्ति’ के विचारों को लोक जीवन तक पहुँचाया।
- इनके प्रचार का मुख्य माध्यम काव्यमय सरंचनाएँ थी, जिन्हें लोक समाज में “दंगल’ के नाम से जाना जाता है।
- ये “दंगल’ जब भी आयोजित होते हैं, तो दोनों पक्षों के खिलाड़ियों को बुलाया जाता है और फिर इनमें पहर-दर-पहर काव्यात्मक संवाद होते हैं।
- तुर्रा कलंगी’ का ख्याल बहुत लोकप्रिय हुआ है और यह सम्पूर्ण राजस्थान में खेला जाता है। इसका विस्तार मध्यप्रदेश तक भी है।
रम्मत
- जैसलमेर व बीकानेर क्षेत्र के खयाल रम्मतों के नाम से जाने जाते है।
- रम्मत लोक नाट्य शैली का प्रारंभ जैसलमेर में हुआ था।
- जैसलमेर में तेज कवि ने रहमतों का खड़ा प्रारंभ किया था।
- बीकानेर की रमत प्रसिद्ध है।
तमाशा
- जयपुर की लोक नाट्य शैली।
- तमाशा के प्रमुख कलाकार बंशीधर भट्ट थे।
- गोपी जी, भट्ट फुल जी भट्ट, मनु जी भट्ट, तथा वासुदेव भट्ट तमाशा के अच्छे कलाकार हैं।
नौटंकी
- राजस्थान में नौटंकी का प्रचलन डीग निवासी भूरेलाल ने किया।
- भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर आदि उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में नौटंकी नामक लोकनाट्य का प्रचलन अधिक है।
गवरी या राई
- राजस्थान के उदयपुर डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा का क्षेत्र।
- भीलों का प्रसिद्ध लोक नाट्य है।
- गवरी लोकनाट्य का मुख्य आधार शिव तथा भस्मासुर की कथा है।
- राखी के बाद से इसका प्रदर्शन 40 दिन चलता है।
- यह लोकनाट्य राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है, जो लोक नाट्य का मेरुनाट्य कहा जाता है।
- इस लोकनाट्य की विशेषता है की इसे भीलों के अलावा कोई नहीं खेल सकता।
- स्वांग
- यह भी लोकनाट्य का एक रूप है। जिसमें एक ही चरित्र होता है, जो किसी विशेष ऐतिहासिक पुराणिक, लॉक प्रसिद्ध, चरित्र या देवी देवता की नकल में मेकअप कर उसके जैसी वेशभूषा पहनता है ,उसी के अनुरूप अभिनय करता है।
- भीलवाड़ा जिले के मांडल में का स्वांग बहुत प्रसिद्ध है। जानकीलाल भांड स्वांग के प्रमुख कलाकार हैं।
भवाई नाट्य
- भवाई गुजरात का लोक नाट्य है। परंतु राजस्थान के गुजरात के सीमावर्ती इलाकों में भी है नृत्य नाटिका बहुत लोकप्रिय हैं। यह लोकनाट्य व्यवसायिक श्रेणी का है।
- यह नाट्य विशेष जाति बढ़ई जाति के लोग मुख्यतः अभिनीत करते हैं।
फड़
- लोक देवी देवताओं की जीवन गाथा को फडो पर चित्रित कर बांचने की परंपरा है।
- फड़ भोपा द्वारा बांची जाती है।